मैं किस तरह का इंसान हूँ........!!

हा कुछ अच्छा नही लग रहा,
शायद कुछ ठीक नही है,
मन मे बहुत से सवाल है,
बहुत सी बातें है,
जिनके जवाब चाहता हु,
सवाल मेरे है,
जवाब तुम्हे देना है,
हा तुम्हे,
लेकिन में तुमसे पूछ नही रहा हु,
तुम समझ जाओ जिस दिन,
तो दे देना जवाब,

हा थोडा परेसान हु,
समझ नही पा रहा हु,
किस पर भरोसा करू,
किस पर नही,
हर कोई जो मुझे अपना कहता है,
बस वो कहता है,
उनके हावभाव इस बात की पुष्टि नही करते,

बाते बहुत अच्छी बना लेते हो,
मूर्ख बनाने में तो तुम्हे इनाम मिलना चाहिए,
स्वार्थ के सिक्का बहुत अच्छा उछाल लेते हो,
में सब समझता हूं,
में सब जनता हु,
वाकिफ हु तुम्हारी हरकतों से,
बस बोलता नही हु,
क्योंकि कोई फायदा नही है,
जगाया उसे जाता है जो सोया होता है,
जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे 
कैसे जगाया जाए,
बस अब दुर जाना है,
तुमसे दूर,
हा तुमसे दूर,
क्योंकि मन मे आये हुए विचार
कही न कही सत्य ही होते है,
या सत्य के समकक्ष होते है,
ऐसा लगता है चेहरे पे चेहरे लगाते हो,
तुम मूर्ख बहुत अच्छा बनाते हो,

हा मुझे समझ नही आती
तुम्हारी ये चालाकियां,
में मान लेता हूं,
तुम्हारी हर एक बात को सच,
में तुम्हारा साथ भी देता हूं,
हर पल हर एक मोड़ पर,
जहा भी तुम्हे मेरी जरूरत पड़ी,
आगे भी दूंगा,

में सच्चाई से वाकिफ हु,
फिर भी में तेरे साथ हु,
बस इतना अहसास तो,
तुझे भी होना चाहिए की 
मैं किस तरह का इंसान हूँ........!!

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