उतार चढाव मेरे जीवन का

कभी कभी वक़्त एक ऐसे दोहरहे पर हमें ला कर खड़ा कर देता है, जहाँ से गुजरना बहुत मुश्किल होता है, बस ऐसे ही मोड़ पर आज में खड़ा हूँ, या यूं कहू इस जगह आ कर रुक गया हूँ, ना में आगे बढ़ रहा हूँ, ना ही पलट कर किसी ओर राह पर जा सकता हूँ, 

ना बता सकता हूँ,
ना जता सकता हूँ,
ना ही में अपने अंदर की पीड़ा,
किसी को दिखा सकता हूँ,

बस मैं अभी खामोश रहना चाहता हूँ, क्योंकि खामोशी ही है जो मुझे आगे का रास्ता दिखाएगी.....

अभी दफ्तर से घर द्वार पहुँचा ही था, दिनभर की थकान को समेटे हुए घर की दहलीज पर कदम रखा, बेग कंधे से उतार कर पास रखी टेबल पर रख दिया, ओर चैन की सांस लेने के लिए पास रखी कुर्सी पर पाव फैला कर बैठ गया, गर्दन सीधी कर आंखे बंद करके एक लंबी सांस ली, आंखे बंद होते ही एक अलग दुनिया का नजारा दिखता है, अक्सर महसूस किया है मेने, थकान से चूर होता है तन बदन, लेकिन फिर भी आंखे बंद होते ही, जमाने की भगा दौड़ के साथ हम भी भाग रहे होते है, चिंताओं के सागर घेर लेते है, 
मीटिंग्स, ट्रेनिंग्स, आफिस के पचासों तरह के काम, बॉस कर ताने बाने, साथियो की आपसी मेल जोल ओर थोड़ी सी अव्यवहारिक भावना, इन सबका मिला जुला समावेश इतनी रफ्तार से बंद आंखों के सामने चलता है कि जैसे बुलेट ट्रेन नजरो के सामने से गुजर रही हो....

अचानक एक जोर से गुजरते हुए वाहन की आवाज से मेरी आँखें खुल, फिर में उठा अंदर जा कर मुह धो कर मेने अपने कपड़े बदले, ओर फिर एक कड़क चाय पी, 
चाय पीते पीते फिर में खो गया अपनी ही एक अलग दुनिया मे, याद आया आज सुबह का वो बेहिसाब धुँध के बादलों से लड़ाई करते हुए मेरा दफ्तर की ओर जाना, उसी वक़्त रास्ते की धुँध में साफ नीले आसमान में सूरज का दिखना, बिल्कुल लाल और गोल गोल तुम्हारे मथे की बिंदिया जैसा नजर आ रहा था, वो नजारा जितना सुखद था, वैसा ही था तुम्हारा मेरे जीवन मे होना, वो अहसास जो सुबह सुबह की हल्की हल्की ठंड हमे देती है, हाँ वही अहसास जो जड़ो के दिनों में ओढे हुए कम्बल की गर्माहट देती है, कहाँ गयी हो तुम, कब तक आओगी............. इन सवालों का जवाब जानते हुए भी अनजान बनता हुआ मैं.......!!


बस एक मशहूर शायर का एक शेर.........!!

जो हरा जिंदगी से हो सफाई कुछ नही देता,
उसे तो शोर गुल में भी सुनाई कुछ नही देता,
यही कहने का मकशद है कि हर एक चीज़ की हद है,
ज्यादा रौशनी में भी दिखाई कुछ नही देता....!!

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