पल गुजरा,
पल पल से गुजरे कुछ पहर,
पहर से गुजरे दिन,
दिन से गुजरे कुछ महीने,
महीनों से गुजर गए कुछ साल,
फिर भी है दिल मे ये मलाल,
क्या सच मे यही होना था,
हमारे रिश्ते का हाल,
हा पता है तुम जी लोगी,
तुम्हे आदत है,
पर कभी मेरे बारे में
भी सोच लिया करो,
क्या होता है मेरा हाल,
जिस पल सुना था मैंने,
मेरे कान सुन्न पड़ गए थे,
विश्वास नही हो रहा था,
ये हकीकत है या कोई सपना,
फिर आंखों से नींद
ओझल रही कुछ महीनों,
अभी तो ठीक से सपनो को
एक धागे में पिरोया भी नही था,
ओर इतनी जल्दी टूट गए,
क्या इतनी कच्ची थी
हमारे रिश्ते की डोर,
उगते सूरज की पहली
किरण की तरह तुम आयी थी,
मेरी जिंदगी में,
ठंडी हवाओं की तरह,
सहला रही थी,
ओर ये आस्वासन दे रही थी,
की जीवन भर में रहूंगी
तुम्हारे साथ,
ना छोडूंगी तुम्हारा हाथ,
तुम्हारी नाजुक उंगलियों की
पकड़ में कैद मेरी उंगलिया,
आज भी उस छुअन के अहसास
को महसूस करती है,
याद है मुझे
जब तुम्हे सामने बिठा कर,
घंटो तुम्हारी आँखों मे देखा करते थे,
ओर एक सवाल आंखों ही आंखों
में पूछ लेते थे,
क्या हम जीवन भर साथ रहेंगे??
तब भी तुम्हारी आंखे चुप रहती थी,
शायद वो ये जानती थी,
ये बंद आंखों से दिखने वाला
एक सपना है बस,
ओर कुछ नही,
याद है मुझे वो रात,
जब देर रात को
हमरा झगड़ा हुआ था,
ओर मेने कहा था
अब तुम्हे दोबारा
नही मिल पाएंगे हम,
अगले ही दिन तुमने
आसमान सर पे
उठा लिया था,
वो सिर्फ कुछ पल थे,
जुदाई के, जिन पलो में,
तुम बोखला सी गयी थी,
मुझसे बात करने के लिए,
तुमने जमीन आसमान
एक कर दिया था,
अंत मे जब तुम्हारी,
मुझसे बात हुई तो,
तुमने मुझे लाखो बाते सुनाई,
ओर फिर रोते रोते,
यही कहा की,
दोबारा मुझे छोड़ कर गए,
तो में सच मे मर ही जाऊंगी,
उस पल तुम्हारी
आंखों के आंसू
अपने हाथों से पोछने
का मन कर रहा था,
तुम्हे सीने से लगाने
का मन कर रहा था,
में खुश था कि
तुम मेरे साथ थी,
दूर होकर भी
मेरे सबसे पास थी,
दौर चलता रहा कुछ
यू ही प्रेम का तुम्हारे साथ,
सपनो के महल
अपनी एक एक ईंट
जोड़ रहे थे,
ठीक एक साल तीन महीने
ग्यारह दिन बाद
वो दिन भी आया
जब पहली बार
मेरा विश्वास डगमगाया,
पहली बार तुम्हारी
बातों पर मुझे
संदेह नजर आया,
दोपहर के पौने तीन बजे
मेरा संदेह हकीकत
बन कर मेरे सामने आया,
जिस तरह दूध को खटाई
फाड़ देती है,
उसी तरह रिश्तों को बेवफाई
मार देती है,
फूलो से सजी राह,
रेगिस्तान बनती जा रही थी,
रिश्तों की डोर
डगमगाते डगमगाते
इतनी डगमगा गयी,
जो फिर कभी थम ना सकी,
फिर एक रोज
हम दोनों की
आखरी मुकम्मल
मुलाकात हुई,
आमने सामने बैठकर घंटो बात हुई,
दोनों की आंखों से
आसुओ की बरसात हुई,
वो मुझे बस एक ही
बात समझा रहे थी,
आगे का सफर अकेले
ही तय करना है,
ये बात बता रहे थी,
मुझसे दूर जा कर
खुश तो वो भी नही थी,
फिर भी खुद को झूटी
तसल्लिया दे रहे थी,
सपने से हकीकत में आने का
वो दिन नजदीक आ गया,
एक अजनबी का उनके लिए
रिश्ता जो आ गया,
देकर हवाला मजबूरियों का
वो दूर हो गए,
हम आईने के जैसा एक पल में
चाखनाचुर हो गए,
चाखनाचुर हो गए,
दिन बीतते गए,
दिन माह बन गए,
एक एक माह जुड़के
आज साल बन गए,
सालो के बाद आज भी
चाहत ना कम हुई,
आंखे नम हुई,
लेकिन महोब्बत
कम नही हुई...!!
पंखराज....!!
बहुत खूब पंकज जी
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