याद करते हो तुम ये भी अहसान है,
खैरियत से है हम ये तो अनुमान है,
एक अनजान वो जान लेता है सब,
जान पहचान वाले ही अनजान है।।
सुर ना अब ताल है फिर भी गा लेते है,
मुफ़्लिशि में भी हम मशकूरा लेते है,
हिज्र का ये सफर जिंदगी भर का है,
खुद को ये बोल कर हम माना लेते है।।
©® पँखराज
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