न जाने ये कैसी उलझन है,
न जाने ये कैसी कश्मकश है,
न जाने कौन सा ये गम है,
जिसके सामने हजारो खुशियाँ फीकी पड़ जा रही है।
जवाब शायद मैं जनता हूँ।
पर फिर भी नजाने क्यों,
मै अपने आप से इतने सवाल कर रहा हूँ।
ये तेरी कमी का एहसास है, जो बेचैनी बन कर मेरे सिने में उतरती जा रही है।
सब तो है मेरे पास !
पर फिर भी क्यों मै अपने आपको इतना तनहा महसूस कर रहा हूँ।
आज चलते चलते मेरे कदम उसी अपना स्वीट के सामने जा रुके।
वो चायनीज़ भेल के खट्टे मीठे और तीखे स्वाद में छिपी तेरी याद ने मुझे बाँध सा दिया था।
वो तीसरी मंजिल की कांच वाली खिड़की के पास कोने वाली सीट,
और उस सीट पर आज में अकेला,
सामने राखी उस भेल को देख कर यु तेरी यादो का आना,
मन में बस यही ख़याल आया,
अगर तुम साथ होती तो उस मंचूरियन को काटे की चम्मज से उठा कर मुझे खिलाती।
अगर तुम साथ होती तो कहती की, 'सोनू थोड़ा सॉस तो मिलाओ'।
अगर तुम साथ होती तो कहती की , 'अरे रुको तुझे तो खाते ही नहीं आता में खिलाती हूँ'।
इन्ही यादो में ही खोया था कि अचानक खांसी आ गई,
अनायास आई उस खांसी ने भी तेरी कमी का एहसास करा दिया ।
अगर तुम होती तो अपने हाथो से मेरी पीठ को सहलाने लगती ।
गले में चुभती उस खांसी कि तरह ये अकेला पन भी मेरी जिन्दगी में चुभ सा रहा था।
आँखों में तेरी याद आंसू बन कर छलक उठी
उस भेल कि तरह मेरी जिन्दगी भी बेस्वाद सी लगने लगी है,
जिसमे कभी तेरे होने का स्वाद छुपा होता था।
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