अब वो मेरी शक्ल से अन्जान बनता जा रहा है....!!

उपयोगिता तय करती है रिश्तों की नजदीकियां
आदमी भी आजकल सामान बनता जा रहा है

व्यक्तितव से ज्यादा महत्व उपयोगिता का हो गया
कद नापना इन्सान का आसान बनता जा रहा है

देख कर इन्सान का इन्सान बन पाना कठिन
जिसको देखो आजकल भगवान बनता जा रहा है

लोग कहते है कि उसके दर पे है मिलता सकून
मेरे अन्दर फिर ये क्यों तूफान बनता जा रहा है

कल जहाँ कुछ भी ना था वहाँ आज छत तैयार है
शायद बिना बुनियाद के मकान बनता जा रहा है

खून का रिश्ते तो अब पानी से पतले हो गये
खून इक मिटती हुई पहचान बनता जा रहा है

पहले जो कदमों की आहट तक से था पहचानता
अब वो मेरी शक्ल से अन्जान बनता जा रहा है

ताकि उसकी इनायतों को भूल ना जाऊं कहीं
जख्म भर चला है पर निशान बनता जा रहा है

जी हाँ कभी ये शहर था फिर जाने क्या चली हवा
अब जिन्दा लाशों का ये कब्रिस्तान बनता जा रहा है

पंखराज.....!!

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