प्रेम का ये पर्व है मधुर चांदनी की छांव में,
खूबसूरती की उपमा चौदहवी के चाँद में,
चंद्र माँ की उज्जवलता प्रेमी का प्रतिक है,
सात जन्मों की कसमे छुपी करवाचौथ पर्व में....!!
पिछले साल की जो करवाचौथ हमने संग संग मनाई थी,
पानी पीने के लिए प्रिये तुम चोरी छुपे आयी थी,
हाथो में तुम्हारे मेहँदी ने रंगीनियत बरसायी थी,
लग रही थी खूबसूरत और थोड़ी सरमयी थी,
मुश्किलों से हमने अपने प्यार पे विजय पाई थी,
आज भी गगन ने वही चांदनी बरसायी है,
दूर तुम हो और मेरे पास में तन्हाई है,
वक़्त तो बदल गया, बदल गयी है वो,
क्या बताऊँ कितनी याद आज तुम्हारी आयी है....!!
पंखराज....!!
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