आज मैं खाली खाली सा हूँ.....
अपने अतीत को टटोल रहा....
तमाम चेष्टा के बाद भी
सब बिखरने से रोक न पाया.......!!
नहीं मालूम जीने का हुनर
क्यों न आया ?
अपने सपनों को पालना
क्यों न आया ?
जानता हूँ मेरी विफलता का आरोप
मुझपर ही है,
मेरी हार का
दोष मुझे ही झेलना है......!!
पर मेरे सपनों की परिणति
पीड़ा तो देती है न,
हर हार मुझे
और हराता है.......!!
पंखराज......!!
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