माँ....

माँ,
सारे सुख इस एक नाम में समाये है,
क्योंकी हर रिश्ता हम बनाते हैं,
एक यही रिश्ता हैं,
जो ईश्वर के जिम्मे हैं....
माँ उसी के घर से जो आती है....!!

बस, यही एक शब्द काफी हैं,
वात्सल्य को चेहरा देने के लिए।
इत्मिनान की सांस के मायने समझने....
और हक़ से हक़ जताने के लिए।
थकन को भूल जाने,
और पैर समेटकर सोने का सुकून पाने के लिए।
गर्मागर्म भोजन का सुख समझने,
और आचार, मुरब्बे, चटनी के चतखारो के आनंद के लिए।
उम्र के अहसास से परे जाकर,
हाथ से निवाला खाने के चिर बालपनी सुख के लिए।
गोद में सर रख कर घंटो बतियाने,
बिना सोचे समझे कुछ भी कह पाने के लिए।
जीते कंचे, लूटी पतंगे छुपाने,
और हर राज बता देने के भरोसे के लिए।
कभी भी ठुनकने, रुठने,
और सचमुच, खुलकर आंसू बहाने की निश्चिंतता के लिए।
और जब छल के आक्रमणों की आशंका सताए,
तब एतबार को केवल इसी नाम से पुकारने के लिए।
माँ...............
यही नाम काफी है....!!

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