मै अक्सर तुम्हारे पास ही होता हूँ,
बाएं हाथ से लिखते हुए जब तुम,
अपने चहरे पर उतर आए जुल्फों को,
दाएं हाथ से कानो पर चढ़ा लेती हो।
तब मै तुम्हारे पास ही होता हूँ।
जब अपनी सहेली के लतीफों को सुनकर,
तुम्हारे दोनों गालो पर गड्ढे उभर आते है,
तब भी मै तुम्हारे पास ही होता हूँ।
खुद की किसी गलती को छिपाकर,
नज़रे झुका लेती हो,
और दुसरो से नज़रे चुराकर जब उन्हें दोबारा उठाती हो,
तब भी मै तुम्हारे पास ही हूँ।
रातों में जब करवटें बदलते,
मेरे बारे में सोचती हो,
तब भी मै तुम्हारे पास ही होता हूँ।
मुझे समझने के लिए जब,
अपने भवों को चढ़ा लेती हो,
और मेरे देखते ही उन्हें गिरा लेती हो,
तब भी मै तुम्हारे पास ही होता हूँ।
पर मुझे कोई हक़ नहीं तुम्हारी
खूबसूरती को इतने करीब से निहारने का।
पंखराज......
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